चिट्ठा URL- "http://journalistpankaj.blogspot.com/"
मूल चिट्ठाकार- पंकज दीक्षित
ब्लॉग प्रकार- लेख और संस्मरण
प्रथम प्रकाशन- 4-11-2007
नवम्बर 2007 से हिन्दी चिट्ठाकारों की दुनिया में एक नया नाम जुड़ा- सनक। इस ब्लॉग के लेखक पंकज दीक्षित ने पहली पोस्ट में अपनी पहली दिल्ली यात्रा का काफी सनकी वर्णन किया है। सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यंग्यपूर्ण शैली में निजी अनुभवों की सपाटबयानी इस चिट्ठे का मूल स्वरूप कहा जा सकता है।
ये चैनल वाले यो ही ब्लू ब्लू चिल्लाते है। हमारे उत्तर प्रदेश मे तो रोज ही जुगाड़ वाले और पहले साइकिल वाले और अब हाथी वाले झंडे लगाए जीपे रोज ही दो सैकडा जगह सड़क रेड रेड कर देते है।
इस शैली में चिट्ठाकार ने राजनीति से खूब दो-दो हाथ किए हैं। मीडिया की हरकतों और स्वरूप पर भी जमकर चुटकी ली गयी है।
न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडिया शीर्षक से लिखा गया लेख तो सीधे-सीधे मीडिया पर कटाक्ष करता नज़र आता है। टी आर पी के घिनौने खेल पर जब पंकज कलम चलाते हैं तो उसकी अभिव्यक्ती कुछ यूँ होती है-
"टी र पी की महामारी फ़ैल गयी है। अब बिहार की बाढ़ में 1000 से भी ज़्यादा मौतें टी र पी में जगह नहीं बना पाती ।"
यदि विधा की बात करें तो गद्य और पद्य दोनों ही रूपों में चिट्ठाकार की कलम चल रही है, पर उनका मूल स्वर व्यंग्य ही है। सनक जैसा शीर्षक चुनना भी उनके भीतर के व्यंग्यकार की ही अभिव्यक्ति है। चिट्ठाकार सनक को सृजन का आधार मानते ब्लॉग विवरण में वे स्पष्ट करते हैं-
ये सनक ही तो है जो हमे मन्जिल तक ले जाती है। तो आप भी सनकिये जी भर के.
यद्यपि इस चिट्ठे पर लेखक की सक्रियता अपेक्षाकृत न्यून है तथापि इसकी सामग्री का स्तर और समाज को देखने का नज़रिया बेहद संतोषजनक है।
एक बात जो विशेष रूप से कहना चाहूँगा वह यह की यूनिकोड में कम्पोज़ करते वक्त व्याकरानीय अशुद्धियों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। यदि हिन्दी चिट्ठों पर इस पक्ष की ओर ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा। अच्छे काम करने की क्षमता जिनमें होती है, उन्हीं से उम्मीद की जाती है। सो हम ये अपेक्षा करते हैं कि सनक का सनकी चिट्ठाकार अपनी सक्रियता और भाषा के प्रति अपनी संवेदनशीलता को और बढ़ाएगा।
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