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प्रिय मित्रों!
मेरी काव्य वाटिका अब पूरे बगीचे का रूप ले चुकी है। अब ब्लॉग की क्यारी में उगी तुलसी वेबसाइट के बगीचे में महक रही है। इस बग़ीचे में आपको विविध क्यारियों की महक और सौंदर्य एक साथ मिलेगा। कृपया ऊपर दिये गए चित्र पर क्लिक करें और हमारे नए घर पधारें-

अखबारनवीसों की खबरें

चिट्ठा URL- ।blogspot।com/">http://bolhalla।blogspot।com/
ब्लॉग प्रकार- पत्रकारिता समाचार
प्रथम प्रकाशन- 1-09-2007
सबकी है इनको ख़बर
अपनी ख़बर कुछ भी नहीं
.....इसी मिसरे की अनुभूति का प्रतिफल है- "बोलहल्ला"
चिट्ठाकार ने इस ब्लॉग की शुरुआत पत्रकारों की ख़बर से की है। कौन पत्रकार कहाँ काम कर रहा है। किसने कहाँ से छोड़कर कहाँ ज्वाइन किया है। किसको निकाल दिया गया। आदि तमाम समाचारों को एकत्रित कर इस चिट्ठे पर प्रकाशित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त समसामयिक विषयों पर त्वरित टिप्पणी करने में भी चिट्ठाकार सक्रिय है। किसानों की आत्महत्या से लेकर कालाहांडी तक तमाम विषयों पर लेखक ने कलम चलाई है।
विचारात्मक लेखों के माध्यम से बौद्धिक सामग्री तो इस चिट्ठे पर मिल ही रही है, साथ ही साथ इस चिट्ठे के माध्यम से आप पत्रकारिता जगत के तमाम संस्थानों, समाचार पत्रों और समाचार चैनलों तथा हिन्दी ब्लॉगिंग के श्रेष्ठ ब्लॉगरों के लिंक भी प्राप्त कर सकते हैं।
इस चिट्ठे को इन अर्थों में भी विशिष्ट माना जा सकता है की इस पर भाषा के प्रति ईमानदारी दिखाई देती है। वर्तनी की शुद्धता और भाषा शैली दोनों ही आकर्षित करती हैं। ब्लॉग पंचलाइन के रूप में दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध पंक्ति का प्रयोग किया गया है-
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन जलनी चाहिए
विचारधारा के स्तर पर इस चिट्ठे के चिट्ठाकार को जो टिप्पणियाँ प्राप्त हो रही हैं वे भी अद्भुत हैं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि उक्त चिट्ठा न केवल बौद्धिक खुराक परोस रहा है, अपितु एक वाक्युद्ध का भी सूत्रपात कर रहा है।

मीडिया पर पत्रकार का प्रहार है- सनक

चिट्ठा URL- "http://journalistpankaj.blogspot.com/"
मूल चिट्ठाकार- पंकज दीक्षित
ब्लॉग प्रकार- लेख और संस्मरण
प्रथम प्रकाशन- 4-11-2007

नवम्बर 2007 से हिन्दी चिट्ठाकारों की दुनिया में एक नया नाम जुड़ा- सनक। इस ब्लॉग के लेखक पंकज दीक्षित ने पहली पोस्ट में अपनी पहली दिल्ली यात्रा का काफी सनकी वर्णन किया है। सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यंग्यपूर्ण शैली में निजी अनुभवों की सपाटबयानी इस चिट्ठे का मूल स्वरूप कहा जा सकता है।
ये चैनल वाले यो ही ब्लू ब्लू चिल्लाते है। हमारे उत्तर प्रदेश मे तो रोज ही जुगाड़ वाले और पहले साइकिल वाले और अब हाथी वाले झंडे लगाए जीपे रोज ही दो सैकडा जगह सड़क रेड रेड कर देते है।
इस शैली में चिट्ठाकार ने राजनीति से खूब दो-दो हाथ किए हैं। मीडिया की हरकतों और स्वरूप पर भी जमकर चुटकी ली गयी है।
न्यूज़ मीडिया या फूयुज मीडिया शीर्षक से लिखा गया लेख तो सीधे-सीधे मीडिया पर कटाक्ष करता नज़र आता है। टी आर पी के घिनौने खेल पर जब पंकज कलम चलाते हैं तो उसकी अभिव्यक्ती कुछ यूँ होती है-
"टी र पी की महामारी फ़ैल गयी है। अब बिहार की बाढ़ में 1000 से भी ज़्यादा मौतें टी र पी में जगह नहीं बना पाती ।"
यदि विधा की बात करें तो गद्य और पद्य दोनों ही रूपों में चिट्ठाकार की कलम चल रही है, पर उनका मूल स्वर व्यंग्य ही है। सनक जैसा शीर्षक चुनना भी उनके भीतर के व्यंग्यकार की ही अभिव्यक्ति है। चिट्ठाकार सनक को सृजन का आधार मानते ब्लॉग विवरण में वे स्पष्ट करते हैं-
ये सनक ही तो है जो हमे मन्जिल तक ले जाती है। तो आप भी सनकिये जी भर के.
यद्यपि इस चिट्ठे पर लेखक की सक्रियता अपेक्षाकृत न्यून है तथापि इसकी सामग्री का स्तर और समाज को देखने का नज़रिया बेहद संतोषजनक है।
एक बात जो विशेष रूप से कहना चाहूँगा वह यह की यूनिकोड में कम्पोज़ करते वक्त व्याकरानीय अशुद्धियों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। यदि हिन्दी चिट्ठों पर इस पक्ष की ओर ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा। अच्छे काम करने की क्षमता जिनमें होती है, उन्हीं से उम्मीद की जाती है। सो हम ये अपेक्षा करते हैं कि सनक का सनकी चिट्ठाकार अपनी सक्रियता और भाषा के प्रति अपनी संवेदनशीलता को और बढ़ाएगा।

एक नयी विधा का चिट्ठा- भड़ास

चिट्ठा URL- http://www.bhadas.blogspot.com/
मूल चिट्ठाकार- यशवंत सिंह
मूल चिट्ठाकार का ई मेल- yashwantdelhi@gmail.com
प्रकार- कम्युनिटी ब्लॉग
प्रथम प्रकाशन- 28-1-2007

"अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा..."
इस पंचलाइन के साथ कुछ चिट्ठाकार हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में एक नई विधा का प्रतिपादन कर रहे हैं। यदि इस चिट्ठे के शीर्षक को समझा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि इस पर प्रकाशित होने वाली सामग्री का स्वरुप क्या होगा। कई बार जब गोष्ठियों आदि में इस चिट्ठे का ज़िक्र छिड़ा तो बहुत से लोगों ने कहा कि दरअसल भड़ास एक नकारात्मक भाव है। लेकिन जब मैंने इस चिट्ठे को देखा तो यह महसूस किया की इस पर प्रकाशित होने वाली सामग्री का अंतत: जो प्रभाव दीख पड़ता है वह बेहद सकारात्मक है।
इस चिट्ठे पर मूलतः व्यंग्यात्मक शैली में सामाजिक विद्रूपताओं पर प्रकाश डाला जा रहा है। सत्य अंततः सत्य होता है। और उसकी अभिव्यक्ति को नकारात्मक मानना कितना सकारात्मक है; यह कहने की आवश्यकता नहीं है। यह चिट्ठा न केवल लोकप्रियता के मापदंड पर खरा उतरता है, बल्कि एक नई विधा के प्रतिपादन के लिए भी साधुवाद का पात्र है। इस चिट्ठे पर लिखने के लिए हर उस व्यक्ति का स्वागत किया जाता है जिसके मन में कोई भड़ास है और जो अपनी भड़ास को अभिव्यक्त करना चाहता है।
भड़ास पर 28 जनवरी 2007 में यशवंत सिंह ने जो पहली पोस्ट लिखी थी उसमें इस चिट्ठे के जन्म के पीछे के स्वप्न और संकल्प को साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। भडास के निर्माता यशवंत जी के शब्दों में-
"भड़ास उन आम हिंदी मीडियाकर्मियों की आवाज है जो ऑनलाइन माध्यम से जुड़े हैं या ऑफलाइन , मसलन अखबार, टीवी और मैग्जीन आदि से संबद्ध हैं। ये उनकी भी आवाज है जो दिल में एक हिंदी मीडियाकर्मी बनने की हसरत रखे हैं, लेकिन उन्हें अभी ठोकरें खानी पड़ रही हैं। ये उनकी भी आवाज है जो हिंदी वाले हैं, दिल वाले हैं लेकिन शहर के खेल-तमाशे में आकर खुद को तनहा पाते हैं। ऐसे सभी लोगों के दिल की धड़कन है भड़ास।"
भड़ास के लेखकों को यशवंत जी ने भड़ासी कहकर संबोधित किया है। आज इस कम्युनिटी ब्लॉग पर 400 से अधिक 'भड़ासी' निरंतर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। आप भी अपनी अनकही बातें बेझिझक इस चिट्ठे पर लिख सकते हैं। और "उसके लिए आप स्वयं ज़िम्मेदार होंगे।"
अभिव्यक्ति के इस सक्षम क्षेत्र को और अधिक सक्षम बनाने में इस चिट्ठे का महती योगदान रहा है। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है की इस चिट्ठे पर 107 अनोखे चिट्ठों की सूची भी मौजूद है।
हिन्दी ब्लॉग जगत् का इतिहास जब कभी लिखा जाएगा तो इस चिट्ठे का ज़िक्र करना इतिहासकार की विवशता होगी।